लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2633
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

अध्याय - 3

जैन धर्म

(Jainism )


प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।

अथवा
महावीर स्वामी की संक्षिप्त जीवनी और शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

महावीर स्वामी तथा जैन धर्म

गौतम बुद्ध के समय आर्विभूत होने वाले अरूढ़िवादी सम्प्रदायों के आचार्यों में जैन धर्म के महावीर स्वामी का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है। वे जैन धर्म के प्रवर्त्तक नहीं थे किन्तु उन्हें छठी सदी ई. पू. के जैन आन्दोलन का प्रवर्त्तक कह सकते हैं। वे बुद्ध के बाद भारतीय नास्तिक आचार्यों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। परम्परा उन्हें चौबीसवाँ तीर्थकर मानती है। इनके पूर्व तेईस तीर्थकर हो चुके हैं जिनमें से तेइसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ की प्रामाणिकता सिद्ध हो चुकी है।

जीवन परिचय महावीरं का जन्म 599 ई. पू. के लगभग वैशाली के निकट कुण्डग्राम में हुआ था। उनके पिता सिद्धार्थ ज्ञातक क्षत्रियों के संघ के प्रधान थे जो वज्जि संघ का एक प्रमुख सदस्य था। उनकी माता त्रिशला वैशाली के लिच्छवि कुल के प्रमुख चेटक की बहन थी। महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था। युवावस्था में कुण्डिन्य गोत्र की कन्या यशोदा के साथ उनका विवाह हुआ। उससे उन्हें अणोज्जा (प्रियदर्शना) नाम की लड़की उत्पन्न हुई। उसका विवाह जामालि के साथ हुआ। वह प्रारम्भ में उनका शिष्य बना किन्तु बाद में उसने ही जैन धर्म में पंचम भेद उत्पन्न किया। बुद्ध के समान महावीर के जन्म के समय भी उनके चक्रवर्ती राजा या सन्यासी बनने की भविष्यवाणी की गई थी।

30 वर्ष की अवस्था में माता-पिता की मृत्यु के बाद महावीर ने अपने भाई राजा नन्दिवर्मन से आज्ञा लेकर गृह त्याग दिया। 13 मास सन्यासी जीवन बिताने के बाद वे पूरी तरह से निर्वस्त्र रहने लगे और निरन्तर भ्रमण करते रहे। वे राजगृह व नालन्दा गए जहाँ उनका सम्मान किया गया। 12 वर्षों की कठोर तपस्या तथा साधना के बाद जृम्भिक गाँव में ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल वृक्ष के नीचे उन्हें केवल्य (ज्ञान) प्राप्त हुआ। ज्ञान प्राप्ति के बाद वे 'केवलिन, जिन (विजेता), अर्हत् (योग्य) तथा निर्गन्ध ( बन्धन रहित ) कहलाए। केवल्य प्राप्ति के बाद महावीर ने अपने सिद्धान्तों का प्रचार किया। वे आठ महीने तक भ्रमण करते थे तथा चार महीने (वर्षा ऋतु) में विभिन्न नगरों में विश्राम करते थे। वे कई बार अजातशत्रु तथा बिम्बिसार से भी मिले और अपना सम्मान कराया। चेटक उनका मामा था अतः उसके सम्बन्धी राज्यों सौवर, अंग, वत्स, अवन्ति तथा मगध के राजाओं ने उनके मत के प्रसार में पूरा सहयोग किया। समाज के कुलीन वर्ग ने उनका मत अपनाया। राजगृह में उपालि नामक गृहस्थ उनका प्रमुख शिष्य था। अजातशत्रु के समय में उनकी ख्याति सर्वाधिक बढ़ी। महावीर के कुछ अनुयायियों ने उनका विरोध किया। सर्वप्रथम उनके जामाता जामालि ने उनके केवल्य के चौदहवें वर्ष में एक विद्रोह का नेतृत्व किया। परन्तु उनकी ख्याति काफी बढ़ गई और दूर-दूर के लोग तथा राजागण उनके उपदेशों को सुनने के लिए आने लगे। 30 वर्षों तक उन्होंने अपने मत का प्रचार किया और 527 ई. पू. के लगभग 72 वर्ष की आयु में राजगृह के समीप पावा नामक स्थान पर उन्होंने शरीर त्याग दिया।

शिक्षाएँ - महावीर का अपने पूर्वगामी तीर्थकर पार्श्वनाथ से दो बातों में मतभेद था। पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिए केवल चार व्रतों का विधान किया था अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चारी न करना) तथा अपरिग्रह (धन संचय न करना) परन्तु महावीर ने इसमें एक पाँचवां व्रत ब्रह्मचर्य भी जोड़ दिया तथा उसका पालन करना अनिवार्य बताया। दूसरा मतभेद यह था कि पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं को वस्त्र धारण करने की अनुमति प्रदान की परन्तु महावीर ने उन्हें नग्न रहने का उपदेश दिया।

पंच महाव्रत  - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्य ये पाँच महाव्रत हैं जिनका विधान भिक्षुओं के पालनार्थ किया गया है। इनका विवरण इस प्रकार है.-

1. अहिंसा - यह जैन धर्म का प्रमुख सिद्धान्त है जिसमें सभी प्रकार की हिंसा के निषेध पर बल दिया गया है। यह भी पाँच प्रकार की बताई गई है -

(i) इर्या समिति- संयम से चलना ताकि मार्ग में कीट-पतंगों के कुचलने से कोई हिंसा न हो जाए।

(ii) भाषा समिति - संयम से बोलना ताकि कटु वचन से किसी को कष्ट न पहुँचे।

(iii) एषणा समिति संयम से भोजन ग्रहण करना जिससे किसी प्रकार के भी कीड़े-मकोड़ों हत्या न हो सके।

(iv) आदान- निक्षेप समिति किसी वस्तु को उठाने तथा रखने के समय विशेष सावधानी बरतना जिससे जीव की हत्या न हो जाए।

(v) व्युत्सर्ग समिति- मल-मूत्र का त्याग ऐसे स्थान पर करना जहाँ किसी जीव की हिंसा होने की आशंका न हो।

2. सत्य इसमें सदैव सत्य बोलने पर जोर दिया गया है। इसका आचरण निम्नवत् है-

(i) सोच-समझकर बोलना चाहिए।

(ii) क्रोध आने पर शान्त रहना चाहिए।

(iii) लोभ होने पर मौन रहना चाहिए।

(iv) हँसी में भी झूठ नहीं बोलना चाहिए

(v) भय होने पर भी झूठ नहीं बोलना चाहिए।

3. अस्तेय - इसके अन्तर्गत निम्न बातें बताई गई हैं -

(i) बिना किसी के अनुमति के उसकी कोई वस्तु न लेना।

(ii) बिना आज्ञा किसी के घर में प्रवेश न करना।

(iii) गुरु की आज्ञा के बिना भिक्षा में प्राप्त अन्न को ग्रहण न करना।

(iv) बिना अनुमति के किसी के घर में निवास न करना।

(v) यदि किसी के घर में रहना हो तो बिना उसकी आज्ञा के उसकी किसी भी वस्तु का उपयोग न करना।

4. अपरिग्रह इसमें किसी भी प्रकार की सम्पत्ति एकत्रित न करने पर जोर दिया गया है क्योंकि सम्पत्ति से मोह और आसक्ति का उदय होता है।

5. ब्रह्मचर्य इसके अंतर्गत भिक्षुकों को निम्न निर्देश दिए गए हैं-

(i) किसी स्त्री से बातें न करना।

(ii) किसी स्त्री को न देखना।

(iii) किसी स्त्री के संसर्ग की बातें न करना।

(iv) किसी ऐसे घर में नहीं जाना जिसमें कोई स्त्री अकेली रहती हो।

(v) शुद्ध एवं अल्प भोजन ग्रहण करना।

पंच अणुव्रत - महावीर ने गृहस्थों के लिए उपर्युक्त व्रतों को सरल ढंग से पालन करने का विधान प्रस्तुत किया। इसी कारण गृहस्थ जीवन के सम्बन्ध में इन्हें 'अणुव्रत' कहा गया है। इसमें अतिवादिता तथा कठोरता का अभाव है।

अनेकान्तवाद या स्यादवाद का सिद्धान्त- महावीर ने आत्मवादियों तथा नास्तिकों के एकान्तिक मतों को छोड़कर बीच का मार्ग अपनाया जिसे अनेकान्तवाद अथवा स्यादवाद कहा गया है। इस मत के अनुसार किसी वस्तु के अनेकों धर्म (पहलू) होते हैं। अनन्तधर्मक वस्तु तथा व्यक्ति अपनी सीमित बुद्धि द्वारा केवल कुछ ही धर्मों को जान सकता है। पूर्व ज्ञान तो केवलिन के लिए ही सम्भव है। अतः महावीर का कहना कि सभी विचार अंशतः सत्य होते हैं यह उनकी बौद्धिक सहिष्णुता का परिचायक है।

विरत्न - कर्म का जीव के साथ संयुक्त हो जाना ही बन्धन है। प्रत्येक जीव अपने पूर्व संचित कर्मों के अनुसार ही शरीर धारण करता है। मोक्ष के लिए महावीर ने तीन साधन आवश्यक बताए हैं जो त्रिरत्न कहलाते हैं

1. सम्यक् दर्शन- जैन तीर्थकरों और उनके उपदेशों में दृढ़ विश्वास ही सम्यक् दर्शन या श्रद्धा है। उसके आठ अंग बताए गए हैं सन्देह से दूर रहना, सांसारिक सुखों की इच्छा का त्याग करना, शरीर के मोहराग से दूर रहना, भ्रामक मार्ग पर न चलना अधूरे विश्वासों से विचलित न होना, सही विश्वासों पर अटल रहना, सबके प्रति प्रेम का भाव रखना, जैन सिद्धान्तों को सर्वश्रेष्ठ समझना। इनके अतिरिक्त लौकिक अन्धविश्वासों, पाखण्डों आदि से दूर रहने का भी निर्देश किया गया है।

2. सम्यक् ज्ञान - जैन धर्म एवं उसके सिद्धान्तों का ज्ञान ही सम्यक् ज्ञान है। सम्यक् ज्ञान के पाँच प्रकार बताए गए हैं मति श्रुति, अवधि, दिव्य व मनः पर्याय तथा केवल्य अर्थात् पूर्ण ज्ञान जो केवल तीर्थकरों को प्राप्त हैं।

3. सम्यक् चरित्र जो कुछ भी जाना जा चुका और सही माना जा चुका है उसे कार्यरूप में परिणत करना ही सम्यक चरित्र है। इसके अन्तर्गत भिक्षुओं के लिए पाँच महाव्रत तथा गृहस्थों के लिए पाँच अणुव्रत बताए गए हैं। साथ ही साथ सच्चरित्रता एवं सदाचरण पर विशेष बल दिया गया है।

इस प्रकार कर्म का जीव से संयोग बन्धन है तथा वियोग ही मुक्ति है। महावीर ने मोक्ष के लिए कठोर तपश्चर्या एवं कायाक्लेश पर भी बल दिया था। मोक्ष के पश्चात् जीव आवागमन के चक्र से छुटकारा पा जाता है और वह अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त वीर्य तथा अनन्त सुख की प्राप्ति कर लेता है। इन्हें जैन शास्त्रों में 'अनन्त चतुष्ट्य' की संज्ञा प्रदान की गई है।

इस प्रकार महावीर की शिक्षाएँ पूर्णतया नैतिक थीं जिनका उद्देश्य आत्मा की पूर्णता थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  2. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  3. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  5. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  9. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  12. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  13. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  14. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  18. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  19. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  20. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  21. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  22. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  23. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  24. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  25. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  28. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  29. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  30. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  32. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  33. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  34. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  35. प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
  36. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
  38. प्रश्न- सुख प्राप्ति ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। बताइये।
  39. प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- "चार्वाक की तत्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा पर आधारित है।" विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
  44. प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
  45. प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- जैनों के बन्धन तथा मोक्ष सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  47. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का परिचय दीजिये।
  48. प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
  49. प्रश्न- द्रव्य को आकृति द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- जीव अथवा आत्मा किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- अजीव द्रव्य क्या है? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
  53. प्रश्न- जैन दर्शन के द्रव्य सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  54. प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
  56. प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
  57. प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
  58. प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
  59. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
  60. प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
  61. प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
  62. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  63. प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
  64. प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बौद्ध धर्म के उत्थान व पतन के क्या कारण थे? समझाइये।
  66. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
  67. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
  69. प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
  70. प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
  72. प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
  73. प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
  76. प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
  79. प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
  80. प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
  82. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
  83. प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
  84. प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
  85. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
  87. प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
  88. प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
  90. प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  91. प्रश्न- सांख्य ज्ञानमीमांसा की विवेचना कीजिए।
  92. प्रश्न- सांख्य दर्शन के पुरुष की अनेकता की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
  94. प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
  95. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- योग दर्शन के अभ्यास के अंग कौन-कौन से हैं?
  97. प्रश्न- योग दर्शन में तीन मार्ग कौन से हैं?
  98. प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
  99. प्रश्न- योगांग किसे कहते हैं?
  100. प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
  101. प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  104. प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
  105. प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
  106. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  107. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रमाण शास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  109. प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
  110. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
  111. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  116. प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
  118. प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
  121. प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
  122. प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
  123. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
  124. प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
  125. प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
  129. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  130. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  131. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  133. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  134. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  135. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  136. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
  137. प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
  138. प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  140. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
  141. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
  142. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  143. प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
  144. प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
  145. प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
  146. प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  147. प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
  148. प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
  149. प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
  150. प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
  151. प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
  152. प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
  153. प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
  154. प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
  155. प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
  156. प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
  157. प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
  159. प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
  161. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
  162. प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
  163. प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
  164. प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
  165. प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  166. प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
  167. प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
  168. प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  169. प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
  170. प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
  171. प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  172. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
  173. प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
  174. प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
  175. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
  176. प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
  177. प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
  178. प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  179. प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
  180. प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
  181. प्रश्न- चित्त क्या है?

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book